अनपढ़ आदिवासी
बाबा नंदराम मीणा
राजस्थान के करौली जिले के कटकड़ गांव निवासी 89 वर्षीय बाबा नंदराम
मीणा
पढ़ने के नाम पर कभी स्कूल नहीँ गए, फिर
भी वे दसवीँ कक्षा के गणित विषय मेँ त्रिकोणमिति, ज्यामिति, बीजगणित आदि के
सवालों को चुटकियों मेँ
हल कर देते थे ।
वे 41 वर्ष से सरकारी विद्यालयों मेँ पहुँच कक्षा 6 से 10 तक के विद्यार्थियोँ को
गणित के सवाल हल कराते थे । बाबा नंदराम
इन दिनों राजकीय उच्च माध्यमिक एवं राजकीय बालिका माध्यमिक विद्यालय
रतनजिला मे जाकर बच्चों को गणित पढ़ाते
रहे हैं । वे गांव के निकट मुस्लिम मदरसों मेँ जाकर शौकिया उर्दू भी पढ़ाते
हैँ । उनकी समझ और पढ़ाने की शैली के सब
कायल
थे । यही नहीं उन्होंने अब तक कई निरक्षर प्रौढ़ों को अक्षर ज्ञान भी कराया है
। निरक्षरों को साक्षर करने के लिए स्वयं की
कृर्षि
आय से गांव व आसपास की ढाणियों में प्रौढ़शालाएँ संचालित की । बाबा के शिक्षा
के प्रति अत्यधिक समर्पण भाव की ग्रामीण
व
आस पास के क्षेत्र के
लोग मुक्त कंठ से प्रशंसा करते है ।
वर्ष 1956 मेँ नंदराम बाबा ने कटकड़ मे नदी किनारे स्थित प्राथमिक
विद्यालय को प्रयास कर गांव के बीच स्थापित कराया
विद्यालय को क्रमोन्नत कराने के लिए उन्होँने स्वयं
रुपये खर्च कर विद्यालय में छह कमरों का निर्माण कराया । बाद में
विद्यालय को माध्यमिक व उच्च माध्यमिक दर्जे के लिए नंदराम मीणा ने अपना खेत
बेचकर विद्यालय प्रबंधन को सड़क
किनारे भूमि खरीदकर दान दी तथा 20 कमरों का निर्माण कराया
स्कूल में सुचारु अध्यापन के लिए नंदराम ने सरकारी
अनुमति से स्वयं की ओर से वेतन देकर तीन अध्यापक भी लगाए । अबतक हजारो छात्र
नन्द बाबा से शिक्षा ग्रहण कर
करियर
बना चुके | शिक्षा के प्रति एक
आदिवासी का अदभूत त्याग और तपस्या ।
हम सबको बाबा से प्रेरणा लेकर समाज को पूर्ण शिक्षित करने का कार्य करना चाहिए
। शिक्षा एक कारक है जिसके माध्यम
से
मानव में शारीरिक एवं आध्यात्मिक गुणों का विकास किया जाता है और यह मानव को
केवल मानव व गुरु से ही प्राप्त नहीं
होती वरन भावुक एवं कल्पनाशील व्यक्ति, प्रकृति,अनुभव से भी शिक्षा ले
सकता है यह काम कर दिखाया है राजस्थान के
करोली जिले के कटकड़ गाँव के के बाबा नंदराम मीणा ने | साथ ही बाबा अम्बेडकर
के प्रथम मंत्र शिक्षित बनो को मूलमंत्र
बना
कर . जो क्रांति पढ़े
लिखे लोग नहीं ला सके उस क्रांति का आगाज आदिवासी बाबा नन्द राम ने कर दिया |
अब बाबा की केवल स्मृतिया शेष है हमारी बहुत सी प्रतिभाये है जो समाज के सामने
आने और पुरुस्कार मिलने से वंचित
रही है और उनसे कमतर स्वर्ण
लोग पुरुस्कार और प्रतिष्ठा दोनों प्राप्त कर लेते है |...पुरुस्कार और सम्मान
दोनों जाति देखकर
दिए जाते है बाबा नंदराम मीणा ठहरे एक अनपढ़ आदिवासी जिनके पास शिक्षा की कोई
डिग्री भी नहीं वो केवल अपना काम
ईमानदारी से करना जानते थे .|आदिवासी समाज को चाहिए
की उनके नाम से निशुल्क शिक्षण संस्थान चलाये और इस दिवश
पर याद कर उन्हें नमन
जरुर करे |
बाबा के चरित्र पर दो
लाइन :-
कलित कुसुम से हँसना
सीखा , कलियों से मुस्काना ,
वारिद से परहित में
मरना , सेवा-भाव भूमि से सीखा
शिखरों से दृढ रहना
अनुभव से सीखा,
शिक्षा डगर चलना |
...
शिक्षा को समर्पित बाबा
नंदराम के मनोभाव संभवतः ऐसे होगे :-
बाबा के मनोभावों पर पी
एन बैफलावत द्वारा अभिव्यक्ति :-
अंचल भू का चंचल
आदिवासी में , लेकिन मेरा ध्येय बड़ा
धन से,तन से,दीन सदा हूँ लेकिन मन
में सेवा भाव सदा,
करू समाज शिक्षित में
इसी डगर पे चालू सदा
लिखा पढ़ा कर बनाऊ
शिक्षित कर लू करम कड़ा
अंचल भू का चंचल
आदिवासी में , लेकिन मेरा ध्येय बड़ा........
समाज के युवाओ से बाबा
नंदराम की अपील ...पीएन बैफलावत के शब्दों में ...
साक्षरता का दीप जलाकर
जीवन अपना रोशन कर लो
पाटी पोथी उठाकर जीवन
शिक्षा अमृत से भर लो .....
बाबा की प्रतिभा पर
यहां यह कहावत सही बैठती है " प्रतिभा छिपाये न रहे, पल पल दे प्रकाश ।
दाबी दबी न रहे कस्तूरी
की बास । "
सरकार और तथाकथित सभ्य समाज बाबा का सम्मान न करे यह सोचकर की एक आदिवासी की
ख्याति ...क्यों फैले ..
पर ध्यान रहे ...
"
ख्याति एक नदी की भांति अपने उद्गम स्थान पर अति संकीर्ण
और बहुत दूर पर अति
विस्तृत होती है । " बाबा की शक्सियत पर कहना चाहूँगा ...
"
मीनख घणांई मुलक म, मीनखां तणों सुकाल ।
ज्या मीनखां म मीनखणों बा मीनखां रो काल ॥ "....
अदभूत व्यक्तित्व बाबा
नंदराम को सच्चे शिक्षक के रूप में हार्दिक नमन !!